गर्भावस्था में दवाओं से बचने के लिए क्यों कहते है डॉक्टर्स
गर्भावस्था के दौरान दवाओं से परहेज क्यों करें (why to avoid medicines during pregnancy) और गर्भावस्था में दवाओं से बचने के लिए क्यों कहते है डॉक्टर्स – Why do Doctors ask to Avoid Medicines During Pregnancy, इसका जवाब जानना बेहद जरुरी है। आखिर क्यों गर्भावस्था में दवाओं से बचने के लिए कहा जाता है और गर्भावस्था में ज्यादा दवाएं ना लेने की सलाह दी जाती है।
महिलाओं और पुरुषों के शरीर की बनावट अलग है इसलिए ये खाना भी एक जैसे और एक ही मात्रा में नहीं खाते। महिलाएं अक्सर पुरुषों से कम खाना खाती है मतलब अगर पुरुष चार रोटी खाता है तो महिला तीन रोटी खाती है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है की ऐसा दवाइयों के साथ क्यों नहीं होता?
किसी भी बीमारी में, जो दवाएं, जितनी मात्रा में पुरुष खाते है वही दवा, उतनी ही मात्रा में महिलाएं भी खाती है। लेकिन जब महिलाएं रोटी कम खाती है तो दवाएं भी कम क्यों नहीं खाती?
क्या आपने इस सब बातों पर कभी गौर किया हैं? नहीं ना ! इसलिए आज के ब्लॉग में मैं आपसे इन सबके बारे में चर्चा करुँगी और साथ ही इस ब्लॉग को पूरा पढ़ने के बाद आपको यह भी अच्छे से समझ आ जाएगा की आखिर क्यों महिलाओं को गर्भावस्था में दवाएं ना खाने की सलाह दी जाती है। इसलिए अंत तक इस पोस्ट के साथ बने रहें।
आज के ब्लॉग में आपको pregnancy में कौन सी दवाएं avoid करनी चाहिए, गर्भावस्था में दवाओं के सेवन का क्या दुष्प्रभाव हो सकता है (side effects of medicine in pregnancy or drug side effect during pregnancy), क्या गर्भावस्था में दवाएं खाना सुरक्षित है (drugs safe in pregnancy), गर्भावस्था में खाई जाने वाली दवाएं (pregnancy medicine name list) कौन सी हैं, जैसे सवालों के जवाब मिलेंगे।
गर्भावस्था में दवाओं से बचने के लिए क्यों कहते है डॉक्टर्स – Why do Doctors ask to Avoid Medicines During Pregnancy
महिलाओं को एक दिन में कम से कम 2000 कैलोरीज़ की जरुरत होती है और पुरुषों को लगभग 2500 कैलोरीज़ की, लेकिन यह सिर्फ एक औसत अनुशंसित आंकड़ा है क्यूंकि आपकी उम्र, वजन और लम्बाई के हिसाब से यह जरुरत 200 से 400 कैलोरीज़ ऊपर निचे हो सकती है।
पुरुषों और महिलाओं के शरीर में कई तरह के हॉर्मोन्स होते है जो की काफी अलग-अलग होते है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं के शरीर में ज्यादा हार्मोनल बदलाव होते ही रहते है। तो क्या कभी आपने सोचा है की पुरुषों और महिलाओं की दवाएं अलग अलग क्यों नहीं बनती, क्यों दोनों को एक ही तरह की दवाएं दी जाती है?
इन सवालों के जवाब जानने से पहले जानते हैं किस्सा दवाओं का :
किस्सा दवाओं का
अगर हम दर्द की बात करते हैं तो सबसे पहला नाम इबुप्रोफेन टेबलेट्स (Ibuprofen) का आता है लेकिन पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर इस दवा का असर कम होता है। दर्द के अलावा ये दवा हमारी मनोस्थिति पर भी काफी असर डालती है। इबुप्रोफेन टेबलेट्स खाने के बाद पुरुष थोड़े भावुक (Emotional) हो जाते हैं जबकि महिलाओं के साथ ऐसा कुछ नहीं होता।
कमाल की बात तो यह है की शोधकर्ताओं को एक ही दवा के इस अलग अलग असर के बारे अब जाकर पता लगा है। ऐसा इसलिए हुआ क्यूंकि जिस ज़माने से दवाओं का बनना शुरू हुआ था तभी से जो चिकित्सा परीक्षण होते थे, उन परीक्षणों में महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता था।
सन 1960 में एक कन्टेर्गन स्कैंडल हुआ था। इस स्कैंडल ने फार्मेसी उद्योग को हिला कर रख दिया। फिर सन 1978 में यह नियम बना की कोई भी दवा बाजार में तभी आएगी जब उसका चिकित्सकीय परीक्षण (Clinical Tests) ठीक से किया गया होगा लेकिन महिलाएं इसमें शामिल नहीं होंगी।
इस नियम को बनाने की पहली वजह यह थी की अगर वो महिला गर्भवती हुई तो इस चिकित्सकीय परीक्षण (Clinical Tests) के दौरान माँ या बच्चे में से किसी को भी कोई कोई खतरा हो सकता है और दूसरी वजह थी हॉर्मोन्स क्यूंकि महिलाओं के शरीर में पुरे महीने हार्मोन्स ऊपर निचे होते रहते हैं। तो कहीं इस दवा का परिक्षण उनके ऊपर कोई गलत प्रभाव ना डाल दे।
महिलाओं पर इन चिकित्सकीय परीक्षण (Clinical Tests) के ना होने का नतीजा यह हुआ की इन दवाओं का महिलाओं के ऊपर क्या दुष्प्रभाव हो सकता है इसका पता नहीं लगाया जा सका और ना ही यह पता लगाया जा सका की महिलाओं को इन दवाओं की कितनी खुराक की जरुरत होगी।
क्या आप यकीन मानेंगे की यूरोप की चिकित्सा साखा (Medical Agency) ने साल 2000 में यह नियम बनाया की बाजार में आने वाली हर नयी दवा को महिलाओं पर भी परिक्षण किया जाएगा। यूरोप में इस समय दवाओं के चिकित्सकीय परीक्षण (Clinical Tests) में महिलाओं की भागीदारी 10% – 80% है।
भारत में भी ड्रग्स और कॉस्मेटिक अधिनियम 1940 में महिलाओं का कोई जिक्र नहीं है। देश में आधे से ज्यादा चिकित्सकीय परीक्षण (Clinical Trials) में महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता है।
तो ऊपर लिखी बातों से समझ आपको दवाओं का किस्सा समझ आ गया होगा अब जानते हैं की गर्भावस्था में डॉक्टर्स दवाओं से बचने के लिए क्यों कहते है और गर्भावस्था के दौरान दवाओं से परहेज क्यों करना चाहिए तथा गर्भावस्था के दौरान कौनसी दवाएं जरूर खानी (necessary medicine during pregnancy) चाहिए।
गर्भावस्था में दवाएं क्यों नहीं खाना चाहिए
गर्भावस्था में महिलाओं को दवाओं से बचने के लिए कहा जाता है। इसकी वजह यही है की, कोख में पल रहे बच्चे पर पता नहीं किस दवा का दुष्प्रभाव पड़ जाये। लेकिन ऐसा हमेशा से नहीं था।
जर्मनी में 1950 के दशक में एक दवा कंपनी शुरू हुई थी जिसका नाम था छेमी ग्रुनेथाल (Chemie Grunethal)। यह कंपनी एंटीबायोटिक (Antibiotics) बनाने के लिए शुरू की गयी थी लेकिन इसने एक और दवा बना दी जिसका नाम कन्टेर्गन (Contergan) था।
यह दवा सामान्यतः चिंता (Anxiety) दूर करने और नींद ना आने (Sleep Disorder) के उपचार के लिए बनाई गयी थी। यह दवा इतनी ज्यादा विख्यात हो गई की ना सिर्फ जर्मनी में बल्कि पुरे पश्चिमी दुनिया (western world) यानि यूरोप, USA, कनाडा, ऑस्ट्रेलिआ और नूज़ीलैण्ड में इसको बेचा जाने लगा।
डॉक्टर्स इस दवा को हर बीमारी के लिए इस्तेमाल करने लग गए। किसी को सर्दी खांसी है तो कन्टेर्गन, किसी को कमज़ोरी है तो कन्टेर्गन यानि बात बात पर कन्टेर्गन। कोई भी बीमारी को बस कन्टेर्गन।
गर्भावस्था में मतली, उल्टी, जी ख़राब होना, चक्कर आना (morning sickness) इत्यादि लगा ही रहता है। लोग इसे मॉर्निंग सिकनेस के नाम से जानते हैं, पर इसका सिर्फ नाम ही मॉर्निंग सिकनेस है, मतली, उल्टी, जी ख़राब होना और चक्कर आना, पूरी गर्भावस्था में किसी भी दिन, किसी भी समय हो सकता है।
इसलिए डॉक्टर्स ने सोचा, गर्भावस्था की इस परेशानी के लिए भी कन्टेर्गन (Contergan) ही सही है और उन्होंने यह दवा हर गर्भवती महिलाओं को देनी शुरू कर दी गई। इसका नतीजा यह हुआ की हज़ारों महिलाओं का गर्भपात (miscarriage) हो गया।
1950 से 1960 के दशक में करीब 80,000 बच्चों की जानें गयीं और 20,000 बच्चे अलग अलग तरह की विकृति (deformity) के साथ पैदा हुए। किसी की आंखें ख़राब थी तो किसी का कान, किसी के हाथ नहीं थे तो किसी के पैर, किसी का दिमाग ठीक से विकसित नहीं हुआ था तो किसी का दिल। इसे “BIGGEST MAN-MADE MEDICAL DISASTER EVER” का नाम दिया गया।
तब से दवा बनाने वाली वाली कंपनियां काफी डरी हुई है। उनका यही कहना है की ना तो हम गर्भवती महिलाओं के लिए कोई दवा बनाएंगे और ना की उन पर कोई चिकित्सकीय परीक्षण (Clinical Test) करेंगे।
यह एक बहुत बड़ी समस्या है क्यूंकि हर दवा का महिलाओं और पुरुषों पर अलग अलग असर होता है। इसकी पहली वजह यह है की महिलाओं और पुरुषों में दवा को हज़म होने में जो वक़्त लगता है वो अलग होता है। दूसरा बहुत जरुरी कारण है एन्ज़ाइम्स क्यूंकि एन्ज़ाइम्स ही दवा के साथ मिलकर ऐसी रासायनिक प्रतिक्रिया करते है जिससे दवा अपना काम कर सके।
यानि आप भले ही एक ही मात्रा में दवा की खुराक लें लेकिन दवा का असर कितना होगा यह आपके लिंग यानि महिला या पुरुष होने पर निर्भर करता है। और तीसरा कारण है की महिलाओं के शरीर में वासा यानि चर्बी की मात्रा ज्यादा होती है इसलिए दवा के सक्रिय तत्व (active ingredients) अलग तरह से शरीर में लगते (Absorb) हैं।
महिलाओं को दवाओं के दुष्प्रभाव का खतरा ज्यादा होता है लेकिन डॉक्टर्स इसे मानने को तैयार नहीं होते। चिकित्सकीय शोधों के आकड़ों की माने तो ज्यादातर शोध उन बिमारियों पर होती है जो खासकर पुरुषों को होते हैं।
महिलाओं को होने वाली बिमारियों पर शोध बहुत कम या ना के बराबर हैं। तो जब शोध नहीं होंगे तो दवाएं नहीं बनेंगी और जब दवा ही नहीं होंगी तो डॉक्टर्स आपसे यही कहेंगे ना की ” प्रेग्नेंसी में ऐसा हो जाता है, ये तो बस आपके मन का वहम है”।
महिलाओं को हर महीने मासिक धर्म होते है इसलिए उन्हें दर्द को सहने की आदत होती है। वहीं पुरुष शारीरिक रूप से काफी शक्तिशाली होते हैं लेकिन अपने दर्द को व्यक्त करने में संकोच महसूस करते है। यानि महिला हो या पुरुष, सब अपने सामाजिक वातावरण (social environment) के हिसाब से खुद को ढाल लेते है।
सेहत से जुड़ी बहुत सी आदतें महिलाओं और पुरुषों में अलग-अलग होती है। महिलाएं इस बात पर ज्यादा ध्यान देतीं है की वो वो क्या और कितना खा रही है वहीं पुरुषों को को जिम और स्पोर्ट्स में ज्यादा रूचि होती है। यानि एक का ध्यान खाने पर और दूसरे का कसरत पर रहता है।
बीमारी के बारे में महिलाएं आपस में एक दूसरे से खुल कर बात करती हैं, एक दूसरे के तज़ुर्बे से सिखती हैं। जबकि अधिकतर पुरुष अपनी पत्नी या डॉक्टर के सामने ही अपनी बीमारी के बारे में बता पाते हैं।
अगर किसी दंपत्ति को बच्चा ना हो रहा हो तो महिलाएं जी जान लगा के हर मुमकिन कोशिश करती हैं जबकि पुरुषों को खुद को बदलने का दबाव इतना महसूस नहीं होता।
एरिस्टोटल (Aristotle) जैसे विद्वानों ने कहा था “The Female is at it were, a mutilated Man” यानि औरत, मर्दों का एक ख़राब रूप (Version) ही तो है। शुरुआत में एरिस्टोटल जैसे विद्वानों से किताबें लिखी थी। इसलिए इसी बात को लोगों ने आगे बढ़ाया और औरत को ख़राब ही समझने लगे और औरत को किसी भी चीज में शामिल नहीं किया गया।
आज इक्कीसवीं सदी में भी महिला और पुरुष बराबर नहीं है, बहुत से ऐसे काम है जिनमे महिलाओं को कम आँका जाता है और उन्हें इनमे शामिल नहीं किया जाता।
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उम्मीद करती हूँ आपको आज का यह विषय गर्भावस्था में दवाओं से बचने के लिए क्यों कहते है डॉक्टर्स – Why do Doctors ask to Avoid Medicines During pregnancy अच्छे से समझ आ गया होगा। इस पोस्ट से जुड़े अपने किसी सुझाव या सवाल के लिए आप मुझे कमेंट जरूर करें और पोस्ट पसंद आई हो तो इसे शेयर जरूर करें।