Makar Sankranti Kyu Manaya Jata Hai | मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है?

Makar Sankranti 2023: मकर संक्रांति क्यों मनाते हैं (Makar Sankranti Kyu Manaya Jata Hai) – भारत देश में हर साल 2000 से भी ज्यादा त्यौहार मनाये जाते है और हिंदू धर्म में सूर्य देवता से जुड़े कई प्रमुख त्‍योहारों को मनाने की परंपरा है, जिनमे से एक त्यौहार मकर संक्रांति भी है। भारत के सभी त्योहारों के सिर्फ परंपरा या रूढि बातें नहीं होती है बल्कि हर एक त्यौहार के पीछे ज्ञान, विज्ञान, कुदरत, स्वास्थ्य और आयुर्वेद से जुड़ी कई साडी बातें छुपी होती है। 

हिन्‍दू धर्म में महीने को दो पक्षों में बांटा गया है: कृष्ण पक्ष और शुक्‍ल पक्ष। ठीक इसी तरह से वर्ष को भी दो अयनों में बांटा गया है: उत्‍तरायण और दक्षिणायण। यदि दोनों को मिला दिया जाए तो एक वर्ष पूरा हो जाता है। मकर संक्रांति के दिन से सूर्य की उत्‍तरायण गति प्रारंभ हो जाती है इसलिए मकर संक्रांति को उत्‍तरायण भी कहते हैं।

वैसे तो मकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को मनाई जाती है, लेकिन पिछले कुछ साल से गणनाओं में आए कुछ परिवर्तन के कारण इसे 15 जनवरी को भी मनाया जाने लगा है लेकिन इस बार मकर संक्रांति आज यानि 14 जनवरी को मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जा रहा है। मकर संक्रांति पौष मास में सूर्य से मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है।

वैसे तो संक्राति साल में 12 बार हर राशि में आती है, लेकिन मकर और कर्क राशि में इसके प्रवेश का विशेष महत्व है क्यूंकि इसके साथ बढती गति के चलते मकर में सूर्य के प्रवेश से दिन बड़ा तो रात छोटी हो जाती है, जबकि कर्क में सूर्य के प्रवेश से रात बड़ी और दिन छोटा हो जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और देवलोक में दिन आरंभ होता है। हिंदू धर्म में ऐसे अनेक कारण बताए गए हैं जिनकी वजह से मकर संक्रांति का सभी 12 संक्रांतियों में विशेष महत्व है। श्रमद्भगवतगीता में भी मकर संक्रांति को बेहद शुभ बताया गया है।

हिन्‍दू धर्म की मान्‍यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्‍णु ने असुरों का अंत कर उनके सिरों को मंदार पर्वत में दबाकर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। इसलिए इस मकर संक्रांति के दिन को बुराइयों और नकारात्‍मकता को समाप्‍त करने का दिन भी मानते हैं। उत्‍तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्‍मकता का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्‍नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों को विशेष महत्‍व दिया जाता है।

मकर संक्रांति के पर्व को अलग अलग राज्यों में अलग – अलग नामों से जाना और मनाया जाता है, कई जगहों पर पतंगबाजी का भी आयोजन होता है। 

1. महाराष्ट्र में भी इसे मकर संक्रांति या संक्रांति के नाम से मनाया जाता है। यहां लोग गजक और तिल के लड्डू खाते एवं दान करते हैं तथा एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं। 

2. बिहार तथा उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है। इस दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है। इस दिन तिल और गुड़ का दान देने की भी परंपरा है। बिहार में इस दिन दही चुरा खाने का प्रचलन है। 

3. आंध्रप्रदेश में संक्रांति नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है। वहीं तमिलनाडु में खेती किसानी के प्रमुख पर्व के रूप में संक्रांति को पोंगल के नाम से मनाया जाता है। इस दिन घी में दाल और चावल की खिचड़ी पकाई और खिलाई जाती है। 

4. गुजरात और राजस्थान में मकर संक्रांति को उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन दोनों ही राज्यों में बड़े धूम धाम से पतंग उत्सव का आयोजन किया जाता है। 

5. पश्चिम बंगाल में मकर संक्रांति के दिन हुगली नदी पर गंगा सागर मेले का आयोजन किया जाता है। वही असम में इसे भोगली बिहू के नाम से मनाया जाता है। 

 

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क्‍यों मनाते हैं मकर संक्रांति  – मान्यता तथा वैज्ञानिक कारण

मकर संक्रांति की कहानी (Makar Sankranti Story) : भारत देश की लगभग हर त्यौहार के पीछे कई सारी कहानियां हैं, ऐसे ही मकर संक्रांति के पीछे भी कई सारी कहानियां है।

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्‍वयं उनके घर जाते हैं और शनि मकर राशि के स्‍वामी है। इसलिए इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। पवित्र गंगा नदी का भी इसी दिन धरती पर अवतरण हुआ था, इसलिए भी मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता हैं।

इसके अलावा इस विशेष दिन की एक कथा और है जो भीष्म पितामह के जीवन से जुडी हुई है। उनको यह वरदान मिला था कि उन्हें अपनी इच्छा से मृत्यु प्राप्त होगी। जब वो बाणों की सज्जा पर लेटे हुए थे तब वे उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा कर रहे थे और उन्होंने सूर्य के उत्‍तरायण होने पर ही स्‍वेच्‍छा से शरीर का परित्‍याग किया था। इसका कारण यह था कि उत्‍तरायण में देह छोड़ने वाली आत्‍माएं या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती है या पुनर्जन्‍म के चक्र से उन आत्‍माओं को छुटकारा मिल जाता है। जबकि दक्षिणायण में देह छोड़ने पर आत्‍मा को बहुत काल तक अंधकार का सामना करना पड़ सकता है।

स्‍वयं भगवान श्री कृष्‍ण ने भी उत्‍तरायण का महत्‍व बताते हुए कहा है कि उत्‍तरायण के 6 मास के शुभ काल में जब सूर्य देव उत्‍तरायण होते हैं और पृथ्‍वी प्रकाशमय रहती है तो इस प्रकाश में शरीर का परित्‍याग करने से व्‍यक्ति का पुनर्जन्‍म नहीं होता है और ऐसे लोग सीधे ही ब्रह्म को प्राप्‍त होते हैं। इसके विपरीत जब सूर्य दक्षिणायण होता है और पृथ्‍वी अंधकार मय होती है तो इस अंधकार में शरीर त्‍याग करने पर पुन: जन्‍म लेना पड़ता है।

अनेक स्थानों पर इस त्‍योहार पर पतंग उड़ाने की परंपरा प्रचलित है। लोग दिन भर अपनी छतों पर पतंग उड़ाकर हर्षोउल्‍लास के साथ इस उत्सव का मजा लेते हैं। विशेष रूप से पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। पतंग उड़ाने के पीछे धार्मिक कारण यह है कि श्रीराम ने भी पतंग उड़ाई थी। गुजरात व सौराष्‍ट्र में मकर संक्रांति पर कई दिनों का अवकाश रहता है और यहां इस दिन को भारत के किसी भी अन्‍य राज्‍य की तुलना में अधिक हर्षोल्‍लास से मनाया जाता है।

 

मकर संक्रांति का त्यौहार क्यों मनाया जाता है | मकर संक्रांति मानाने का वैज्ञानिक कारण (Makar Sankranti Significance) : मकर संक्रांति का वैज्ञानिक कारण यह है कि इस दिन से सूर्य के उत्तरायण हो जाने से प्रकृति में बदलाव शुरू हो जाता है। ठंड की वजह से सिकुड़ते लोगों को सूर्य के उत्तरायण होने से शीत ऋतु से राहत मिलना आरंभ होता है।

भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां के पर्व त्योहार का संबंध काफी कुछ कृषि पर निर्भर करता है। मकर संक्रांति ऐसे समय में आता है जब किसान रबी की फसल लगाकर खरीफ की फसल, धान, मक्का, गन्ना, मूंगफली, उड़द घर ले आते हैं। किसानों का घर अन्न से भर जाता है। इसलिए मकर संक्रांति पर खरीफ की फसलों से पर्व का आनंद मनाया जाता है।

मकर संक्रांति हर साल 14 या 15 जनवरी को ही मनाया जाता है क्यूंकि यह वह दिन होता है जब सूर्य उत्तर की ओर बढ़ता है। हिन्दूओं के लिए सूर्य एक रोशनी, ताकत और ज्ञान का प्रतीक होता है। मकर संक्रांति त्यौहार सभी को अँधेरे से रोशनी की तरफ बढ़ने की प्रेरणा देता है। यह त्यौहार एक नए तरीके से काम शुरू करने का प्रतीक है। 

 

2023 में कब है मकर संक्रांति का त्योहार (Makar Sankranti Exact Date in 2023)

मकर संक्रांति का पर्व सूर्य के राशि परिवर्तन के मौके पर होता है। इस दिन सूर्यदेव धनु राशि से निकलकर मकर में प्रवेश करते हैं, वैसे तो मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है, लेकिन साल 2023 में ये त्योहार 15 जनवरी की उदयातिथि पर मनाया जाएगा।

 

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मकर संक्रांति शुभ मुहूर्त (Makar Sankranti Shubh Muhurat)  

हिंदू पंचांग के अनुसार, ग्रहों के राजा सूर्य 14 जनवरी 2023 की रात 8 बजकर 21 मिनट पर मकर राशि में गोचर करेंगे, लेकिन उदया तिथि 15 जनवरी को प्राप्त हो रही है। ऐसे में मकर संक्रांति नए साल में 15 जनवरी 2023 को मनाई जाएगी।

  • पुण्य काल के लिए शुभ मुहूर्त दोपहर 02:43 बजे से 05:45 बजे के बीच है, जोकि कुल 3 घंटे और 02 मिनिट है
  • इसके अलावा महा पूण्य काल के शुभ मुहूर्त दोपहर 02:43 बजे से 04:28 बजे के बीच है जोकि कुल 1 घंटे 45 मिनिट के लिए है

 

मकर संक्रांति पूजा विधि  | Makar Sankranti Puja Vidhi

शास्‍त्रों में मकर संक्रांति के दिन स्‍नान, ध्‍यान और दान का विशेष महत्‍व बताया गया है। पुराणों में मकर संक्रांति को देवताओं का दिन बताया गया है। मान्‍यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस लौटता है। जो लोग इस विशेष दिन को मानते है, वे अपने घरों में मकर संक्रांति की पूजा करते है। मकर संक्रांति की पूजा विधि को नीचे बताया गया है :

  • इस दिन सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहने जाते हैं फिर सूर्य की पूजा की तैयारी की जाती है।
  • एक थाली में 4 काली और 4 सफेद तीली के लड्डू तथा कुछ पैसे भी रखते हैं। इसके बाद थाली में अगली सामग्री चावल का आटा और हल्दी का मिश्रण, सुपारी, पान के पत्ते, शुद्ध जाल, फूल और अगरबत्ती रखी जाती है।
  • इसके बाद भगवान के प्रसाद के लिए एक प्लेट में काली तीली और सफेद तीली के लड्डू, कुछ पैसे और मिठाई रख कर भगवान को चढाया जाता है।
  • तांबे के लोटे में फूल, चावल, रोली,मोली और तिल, गुड़ डालकर सूर्य की पूजा की जाती तथा सूर्य मंत्र का जाप करते हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा के समय इन मंत्रों के जाप करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है
    ॐ सूर्याय नम:
    ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः
    इस मंत्र का उच्चारण कम से कम 21 या 108 बार किया जाता है।
  • प्रसाद भगवान् सूर्य को चढ़ाने के बाद उनकी आरती की जाती है। पूजा के दौरान महिलाएं अपने सिर को ढक कर रखती हैं।
  • पूजा के बाद सबसे पहले मुंह में काले तिल के दाने लेने चाहिए।

मकर संक्रांति पूजा से होने वाले लाभ | Makar Sankranti Puja Benefits

  • इससे चेतना और ब्रह्मांडीय बुद्धि कई स्तरों तक बढ़ जाती है, इसलिए यह पूजा करते हुए आप उच्च चेतना के लाभ प्राप्त कर सकते हैं
  • अध्यात्मिक भावना शरीर को बढ़ाती है और उसे शुद्ध करती है
  • इस अवधि के दौरान किये गए कामों में सफल परिणाम प्राप्त होते है
  • समाज में धर्म और आध्यात्मिकता को फ़ैलाने का यह धार्मिक समय होता है

 

मकर संक्रांति को मनाने का तरीका | Makar Sankranti celebration

मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्नान, दान, व पूण्य का विशेष महत्व है। इस दिन लोग गुड़ व तिल लगाकर किसी पावन नदी में स्नान करते है। इसके बाद भगवान् सूर्य को जल अर्पित करने के बाद उनकी पूजा की जाती हैं और उनसे अपने अच्छे भविष्य के लिए प्रार्थना की जाती है। इसके पश्चात् गुड़, तिल, कम्बल, फल आदि का दान किया जाता है।

इस दिन कई जगह पर पतंग भी उड़ाई जाती है। साथ ही इस दिन तीली से बने व्यंजन का सेवन किया जाता है। कई जगहों पर इस दिन लोग खिचड़ी बनाकर भी भगवान सूर्यदेव को भोग लगाते हैं, और खिचड़ी का दान तो विशेष रूप से किया जाता है। जिस कारण यह पर्व को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा इस दिन को अलग अलग शहरों में अपने अलग अलग तरीकों से मनाया जाता है। इस दिन किसानों के द्वारा रबी की फसल लगाकर खरीफ की फसलभी काटी जाती है।

 

भारत के अलग अलग राज्यों में मकर संक्रांति त्यौहार और संस्कृति | Makar Sankranti in Different States of India

मकर संक्रांति का त्यौहार पुरे भारत में बहुत ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे सभी अलग अलग जगह पर अलग नाम से जाना जाता है और अलग अलग जगहों पर इसे अलग अल्लाह तरीके से मानाने की परंपरा है।

  • उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार में इसे खिचड़ी का पर्व कहते है। इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाना बहुत शुभ माना जाता है। इस अवसर में प्रयाग यानि इलाहाबाद में एक महीने का माघ मेला शुरू होता है।
  • पश्चिम बंगाल में हर साल गंगा सागर में एक बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। जहाँ माना जाता है कि राजा भागीरथ के साठ हजार पूर्वजों की राख को त्याग दिया गया था और गंगा नदी में नीचे के क्षेत्र डुबकी लगाई गई थी। इस मेले में देश भर से बड़ी संख्या में तीर्थयात्री भाग लेते हैं।
  • तमिलनाडु में मकर संक्रांति को पोंगल के नाम से मनाते है, जोकि किसानों के फसल काटने वाले दिन की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है।
  • कर्नाटक और आंधप्रदेश में इसे मकर संक्रमामा नाम से मानते हैं। जिसे यहाँ 3 दिन का त्यौहार के रूप में मनाते हैं। यह आंध्रप्रदेश के लोगों के लिए बहुत बड़ा इवेंट होता है। तेलुगू लोग इसे ‘पेंडा पाँदुगा’ कहते है जिसका अर्थ होता है, बड़ा उत्सव।
  • गुजरात और राजस्थान में इसे उत्तरायण नाम से मनाया जाता है। इस दिन गुजरात में पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता रखी जाती है, जिसमे वहां के सभी लोग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है। गुजरात में यह एक बहुत बड़ा त्यौहार है। इस दौरान वहां पर 2 दिन का राष्ट्रीय अवकाश भी होता है।
  • असम में इसे माघ बिहू के नाम से मनाया जाता है
  • कश्मीर में इसे शिशुर सेंक्रांत नाम से जानते है
  • पंजाब में लोग लोहड़ी के नाम से इसे मानते हैं जो सभी पंजाबी के लिए बहुत महत्व रखता है, इस दिन से सभी किसान अपनी फसल काटना शुरू करते है और उसकी पूजा करते है।
  • बुंदेलखंड में मकर संक्रांति के त्यौहार को सकरात नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार मध्यप्रदेश के साथ ही बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और सिक्किम में भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
  • महाराष्ट्र में संक्रांति के दिनों में तिल और गुड़ से बने व्यंजन का आदान प्रदान किया जाता है। लोग तिल के लड्डू देते हुए एक-दूसरे से “तिल-गुल घ्या, गोड गोड बोला” बोलते है। यह महाराष्ट्र में महिलाओं के लिए विशेष दिन होता है, जब विवाहित महिलाएं “हल्दी कुमकुम” नाम से मेहमानों को आमंत्रित करती है और उन्हें भेंट में कुछ बर्तन देती हैं।
  • केरल में इस दिन लोग बड़े त्यौहार के रूप में 40 दिनों का अनुष्ठान करते है, जोकि सबरीमाला में समाप्त होता है।
  • हमारे देश में कई आदिवासी संक्रांति के दिन अपने नए साल की शुरुआत करते हैं. सभी एक साथ नृत्य और भोजन करते है. उड़ीसा के भूया आदिवासियों में उनके माघ यात्रा शामिल है, जिसमे घरों में बनी वस्तुओं को बिक्री के लिए रखा जाता है।
  • हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में मगही नाम से यह पर्व मनाया जाता है।

 

विदेशों में मकर संक्रांति के त्यौहार के नाम | Makar Sankranti Festival in out of India States

भारत के अलावा मकर संक्रांति दुसरे देशों में भी प्रचलित है लेकिन वहां इसे किसी और नाम से जानते है जैसे की, नेपाल में इसे माघे संक्रांति कहते है। नेपाल के ही कुछ हिस्सों में इसे मगही नाम से भी जाना जाता है। थाईलैंड में इसे सोंग्क्रण नाम से मनाते है। म्यांमार में थिन्ज्ञान नाम से जानते है। कंबोडिया में मोहा संग्क्रण नाम से मनाते है। श्री लंका में उलावर थिरुनाल नाम से जानते है। लाओस में पी मा लाओ नाम से जानते हैं।

भले ही मकर संक्रांति को अलग अलग नाम से मनाया जाता है लेकिन इसके पीछे छुपी भावना सबकी एक है वो है शांति और अमन की। सभी इसे अंधेरे से रोशनी के पर्व के रूप में मनाते है। इस लेख को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद् मकर संक्रांति की आपको ढेरों बधाई!

 

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